यूनियन कार्बाइड त्रासदी के 35 साल बाद भी नहीं सुधरे हालात
राजधानी भोपाल में गैस पीडि़तों के लिए भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) जैसे छह बड़े अस्पतालों के साथ दर्जन भर डिस्पेंसरी होने के बाद भी लोगों को बेहतर इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को हो रही है। ऐसे बच्चों के लिए राजधानी में सिर्फ चार पुनर्वास केंद्र हैं, लेकिन यहां भी सुबह 9.30 से पांच बजे तक ही रखा जाता है।- गैस प्रभावित क्षेत्र से यह पुनर्वास केंद्र भी इतने दूर हैं कि वहां तक एक बार आने-जाने का ऑटो या अन्य वाहनों का किराया ही चार से पांच सौ रुपए तक लग जाता है। शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए हर वक्त एक सहायक की जरूरत होती है, जो उनकी दैनिक क्रियाओं और जरूरतों को पूरा कर सके। गैस पीडि़तों में ज्यादातर कामकाजी या नौकरी पेशा होने के कारण बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं।
- बता दें कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दो-तीन दिसम्बर 1984 की दरमियानी रात निकली यूनियन कार्बाइड गैस का मंजर आज भी लोगों के जहन में बना हुआ है। 35 साल बीतने के बाद भी राजधानीवासी इस मंजर को भुला नहीं पाए हैं। गैस पीडि़त परिवारों का कहना है चौथी पीढ़ी में जन्म लेने वाला शिशु भी मां के गर्भ से ही इस त्रासदी की याद लिए हुए जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो रहे हैं। पीडि़तों को मुआवजा, इलाज आदि पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं। गैस पीडि़त जहां इलाज और रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, वहीं बच्चे शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित हैं।
- मानसिक मांदता कीचार कैटेगरी होती है
माइल्ड: ऐ से बच्चों का आईक्यू 50-69 होता है। ये अपने रोजमर्रा के आवश्यक कार्य खुद से कर लेते हैं। ऐसे बच्चों की याददास्त कमजोर होती है। याद करने के बाद बार-बार भूल जाते हैं। इन्हें विशेष शिक्षा दी जाए तो अन्य बच्चों की तरह याद कर सकते हैं और पढ़ लिख भी सकते हैं। ऐसे बच्चों के लिए विशेष शिक्षक की जरूरत होती है, जो उनके स्तर को समझकर सिखा सकते हैं। - सीवियर: ऐ से बच्चों का आईक्यू 20 से 34 होता है। ऐसे बच्चे पूर्ण रूप से दूसरों पर निर्भर होते हैं। जैसे नहाना, खाना-खाना, कपड़े पहनना, उठना बैठना आदि। ऐसे बच्चों में फाइन मोटर और ग्रास मोटर, आई कान्टेक्ट, दूसरों से बात करना, समाज में उठना बैठना सहित खुद के कार्यों में बच्चे काफी पीछे रहते हैं। यदि इन्हें विशेष शिक्षा और थेरेपी दी जाए तो धीरे-धीरे चीजों को समझने लगते हैं।
- मोडरेट: ऐ से बच्चों का आईक्यू लेवल 35 से 49 होता है। यह बच्चे काफी हद तक अपने दैनिक क्रिया कलापों को खुद से कर लेते हैं। इन्हें विशेष शिक्षा दी जाए तो अपने दैनिक कार्यों जैसे नहाना, खाना खाना, कपड़े पहनना, नाम पता आदि जानकारी रख सकते हैं। सरकार के नियमानुसार हर विद्यालय में एक स्पेशल एजुकेटर होना चाहिए। पर 10 विद्यालय में भी एक स्पेशल शिक्षक नहीं हैं।
प्रोफाउंड: ऐ से बच्चों का आईक्यू लेवल 20 से कम होता है। ये बच्चे पूर्ण रूप से दूसरों के ऊपर निर्भर होते हैं। ऐसे बच्चे बहुत ही कम देखने को मिलते हैं, जो इस समस्या से ग्रसित हैं। इनके लिए पूरे समय एक केयर टेकर की जरूरत होती है। ऐसे में माता-पिता नौकरी पेशा या फिर व्यवयासी होने पर इन्हें पूरा समय नहीं दे पाते। ऐसे बच्चों के लिए भोपाल में कोई सरकारी छात्रावास नहीं है।
- मानसिक रोगी के लक्षण
1. धीमी प्रतिक्रिया
2. भावनाओं को प्रकट करने में असामान्य
3. जल्दी सीखने में असामान्य
4. जल्दी समझने में असामान्य
5. निर्णय लेने में असामान्य
6. एकाग्रता की कमी
7. चिड़चिड़ा पन
8. याद रखने में असामान्य
9. तालमेल में असामान्य
10. दृष्य, श्रव्य अथवा वाक संबंधी कठिनाई
11. दौरे पडऩा
12. धीमी असामान्य शारीरिक विकास शामिल है। - सरकारी अस्पताल में बच्चे को बेहतर इलाज और थेरेपी नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में हमें उसे चिंगारी पुनर्वास केंद्र ले जाना पड़ा।
तबस्सुम, गैस पीडि़त भोपाल - सरकारी अस्पताल में गैस पीडि़त परिवारों, बच्चों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा रही है। जहां बच्चों का इलाज करा सकें।
कल्पना, गैस पीडि़त भोपाल
ये संस्थाएं कर रहीं काम...,
राजधानी में मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों और लोगों के लिए चार संस्थाएं काम कर रही हैं। इनमें से दो गैस पीडि़त परिवार और उनके बच्चों के इलाज, जांच, स्पेशल एजुकेशन के साथ विभिन्न थेरेपी देने का काम कर रहीं हैं।
चिंगारी ट्रस्ट: चिंगारी पुनर्वास केंद्र गैस पीडि़त परिवारों के मानसिक मांदता और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए काम करता है। यहां पांच स्पेशल एजुकेटर, एक सहायक एजुकेटर के साथ ही थेरेपिस्ट कार्य करते हैं। यहां कुल 1032 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। इनमें से 160 से 170 बच्चे रोजाना आते हैं। ऐसे बच्चों के लिए घर से संस्थान तक ले आने और ले जाने की सुविधा के साथ-साथ बच्चों को एक टाइम का भोजन दिया जाता है। इसके साथ ही ऐसे बच्चों को विशेष शिक्षा के साथ ही फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, एक्यूपेशनल थेरेपी दी जाती है।
- गैस पीडि़त परिवारों सहित अन्य लोगों को जागरूक करने के लिए चिंगारी पुनर्वास केंद्र द्वारा माह के दूसरे और चौथे शनिवार को आंगनबाड़ी केंद्रों में पहुंचकर वहां आने वाली महिलाओं को जागरूक किया जाता है। चिंगारी पुनर्वास केंद्र के विशेषज्ञों द्वारा गर्भवती महिलाओं को बताया जाता है कि जन्म के समय बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग पैदा न हो इसके लिए माता-पिता की शादी की उम्र, गर्भधारण व प्रसव के दौरान क्या सावधानी बरतनी चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए।
- सीआरसी भोपाल: राजधानी के पिपलानी क्षेत्र के खजूरीकला में स्थित सीआरसी पूनर्वास भवन में मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों सहित अन्य का उपचार किया जाता है। इसका संचालन दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया जाता है। संस्थान के सहायक प्राध्यापक डॉ. गणेश अरुण जोशी ने बताया कि हमारे संस्थान में पुर्नवास तो है पर ओपीडी ही है।
- उन्होंने बताया कि हमारे यहां आरपी डब्ल्यूडी एक्ट 2016 में परिभाषित 21 तरह के दिव्यांगताओं के लिए सेवाएं दी जाती हैं। संस्थान द्वारा शारीरिक और मानसिक रोगों से पीडि़त लोगों को रोजगार और स्वरोजगार के लिए दक्ष बनाने गाइड किया जाता है। बता दें कि यहां भी गैस पीडि़त बच्चों और परिवारों के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।
- यह पुनर्वास केंद्र छह आयामों पर कार्य करता है। इनमें निम्र हैं।
1. भौतिक: इसमें इलाज, उपचार व उपकरण देते हैं।
2. मानसिक आयाम: इसके तहत मन को शसक्त बनाया जाता है। लोगों को बताते हैं कि जीवन चलाने के लिए मन को कैसे तैयार करें।
3. सामाजिक आयाम: इसके लिए जरूरी होता है कि हम ऐसे लोगों को समाज से जोड़ें जो इनके लिए सहायक हो सकते हैं। इनमें जनप्रतिनिधि, प्रशासन, पुलिस आदि हो सकते हैं।
4. एजुकेशन: यहां नर्सरी से बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के लिए तैयार किया जाता है।
5. रोजगार: नौकरी और स्वरोजगार, ऐसे बच्चों को अलग-अलग फील्ड में दक्ष बनाया जाता है।
6. मनोरंजन/खेलकूद: बिना खेल कूद के जीवन नीरस हो जाता है। यहां विशेष बच्चों के लिए खेल-कूद और मनोरंजक गतिविधियां कराई जाती हैं।
सद्भावना ट्रस्ट: सद्भावना ट्रस्ट के प्रबंधक न्यासी सतीनाथ षड़ंगी ने बताया कि यह ट्रस्ट गैस पीडि़तों की इलाज और दस्तावेजी करण के लिए सितम्बर 1996 में शुरू किया गया था। इस संस्थान में 25292 गैस पीडि़त, 7405 प्रदूषित भू-जल पीडि़त, 1528 गैस व प्रदूषित भूजल पीडि़तों के साथ ही 1349 अपीडि़त रजिस्टर्ड हैं। सुबह 8.30 बजे से शाम 3 बजे तक यहां गैस पीडि़तों की जांच, इलाज और नि:शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं।- यहां रोजाना 140 से 150 लोग अपनी जांच और इलाज कराने आते हैं। संस्था गैस पीडि़त परिवारों का इलाज, सामुदायिक स्वास्थ्य, औषधीय पौधे उगाना एवं आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करना, सामुदायिक शोध, दस्तावेजी करण (डाक्यूमेंटेशन) करने आदि काम करती है। इसके साथ ही गैस पीडि़तों को लेकर किए गए शोध, रिपोर्ट एवं उनके ऊपर लिखी गई किताबों को संग्रहीत करने के लिए पुस्तकालय संचालित करती है।
डीईआईसी (समर्पण) : राजधानी भोपाल के जेपी अस्पताल (1250) परिसर में वर्ष 2014-15 में शुरू किया गया डीईआईसी (समर्पण) संस्थान राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य के तहत संचालित किया जा रहा है। यह संस्थान फोर डी डिसीज की थीम पर इलाज करता है। इसमें डिफेक्ट्स एट वर्थ, डिफीसिएन्सीज, चाइल्डहुड डिसीज व डवलपमेन्टल डिलेस इन्क्लूडिंग डिसबिल्टी हैं। यहां सभी तरह के मानसिक और शारीरिक रूप से (जन्मजात विकृत) बच्चों का इलाज किया जाता है। ऐसे बच्चों को विशेष शिक्षकों द्वारा स्पेशल एजुकेशन, फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, एक्यूपेशनल थेरेपी दी जाती है। यहां रोजाना 50 से 60 बच्चे रोजाना इलाज, थेरेपी व विशेष शिक्षा लेने आते हैं।
- सरकार की गाइड लाइन के हिसाब से यहां ऐसे बच्चों के लिए सिर्फ ओपीडी की व्यवस्था है। पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। डीईआईसी के प्रबंधक उज्ज्वल कुमार ने बताया, संस्थान की टीम कॉलोनियों और बस्तियों में जाकर सर्वे करती है। टीम ऐसे बच्चों को चिन्हित करती है, इसके बाद उन्हें इलाज, थेरेपी, सर्जरी आदि के लिए ले आती है। एक बस्ती या कॉलोनी में ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा होने पर संस्थान वाहन सुविधा उपलब्ध कराता है