कुछ बड़े बुक सेलर और दुकानदार अपने गोदामों पर चोरी छुपे अपनी मर्जी के रेट स्किन करा कर मार्केट में किताबे सप्लाई करते हैं कुछ बड़े बुक सेलर अपनी ही किताबें छपवाने लगे हैं और स्कूलों में मोटा कमीशन देकर अपनी किताबें लगवा रहे हैं
- दुकानदारों से 50%60 परसेंट कमीशन और प्रकाशकों से भी लेते हैं विज्ञापन के नाम पर मोटी रकम
भोपाल /अपने स्कूल की पढ़ाई में निजी प्रकाशकों की किताब शामिल करके चुनिंदा दुकानदारों के काउंटर से ही बिकवाने की चाबी बड़े स्कूल संचालकों के पास होती है। इस चाबी को हासिल करने के लिए बड़े पुस्तक विक्रेता मोटा कमीशन दे रहे हैं।
दो-तीन साल पहले तक किताबों पर 10 से 15 फीसदी कमीशन मिलता था, जो अब बढ़कर 50 से 60 और कुछ मामलों में तो 70 फीसदी तक हो गया है। बड़े निजी स्कूल संचालक गठजोड़ में शामिल नामी दुकानदारों के अलावा प्रकाशकों से विज्ञापन के नाम पर कमीशन और कई अन्य सुविधाएं लेते हैं।
- स्कूली किताबें वास्तविक दामों से इतनी अधिक कीमत में बेची जाती हैं कि स्कूल संचालक को 60 फीसदी और प्रकाशक के 40 फीसदी कमीशन के बाद भी प्रकाशक और दुकानदार को मोटा फायदा हो रहा है , जिसके चलते यह लूट बढ़ती जा रही है और अभिभावक हो रहे हैं परेशान इन कमीशन खोरो से
फ्लाइट से सफर, होटल तक की व्यवस्था
जब दुकानदार और स्कूल के बीच डील हो जाती है तब स्कूल प्रकाशक से भी डील करते हैं, इसमें स्कूल की एनुअल मैग्जीन छापकर देने, विज्ञापन, संचालक और प्रिंसिपल के दिल्ली जाने पर आने-जाने की फ्लाइट टिकट महंगे होटल में रुकने का इंतजाम प्रकाशक करता है। यह सब एक महीने में अभिभावकों से मनमाने दाम पर सेट बेचकर वसूली जाने वाली राशि से होता है।
कुछ दुकानदार तो पुराने रेट मिटाकर अपनी मर्जी से नए रेटों को किताबों पर स्कैन करा कर स्कूल और मार्केट में बेचते हैं
- स्कूल शिक्षा मंत्री ने दिए कार्रवाई के सख्त आदेश
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी ने संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संभाग, भोपाल को निजी स्कूलों पर कार्रवाई कर सूचित करने के निर्देश दिए हैं। आदेश में लिखा है कि अधिकारियों की ओर से निर्देश दिए जाने के एक महीना बीतने पर भी बड़ी संख्या में सीबीएसई स्कूलों ने जानकारी नहीं दी है। ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करके कार्यालय को सूचित करें।
ज्यादा कमीशन के चक्कर में हर साल बदल देते हैं सेट की एक दो किताबें
सीबीएसई स्कूल न केवल महंगा सेट बेचते हैं, बल्कि विद्यार्थियों के छोटे भाई-बहन या दूसरे विद्यार्थी इन किताबों को दूसरे वर्ष उपयोग न कर सकें इसके लिए भी कई चालबाजियां करते हैं कुछ स्कूल संचालक तो ड्रेस टाई बेल्ट जूते और मुझे तक बेच रहे हैं
- अधिकतर स्कूल हर साल सेट की पूरी नहीं तो एक या दो किताब बदल देते हैं, जिससे पुराना सेट अनुपयोगी हो जाता है, क्योंकि बदली गई किताबों को बाजार में ऐसे उतारा जाता है कि यह चुनिंदा दुकानों पर सेट के साथ ही मिलती है, अभिभावकों के पास नया सेट खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
- सेट इस तरह तैयार किए जाते हैं कि किताबों में कुछ पन्नों पर विद्यार्थी लिख लें, निजी स्कूल के शिक्षक लिखी हुई किताबों से पढ़ाई को तैयार ही नहीं होते।
तीन साल पहले तक किताब विक्रेताओं से स्कूल 15 से 20 फीसदी कमीशन ले रहे थे, लेकिन अब यह बढ़कर 50 फीसदी तक हो गया है। प्रकाशकों से विज्ञापन खर्च, किताब लगाने का 40 फीसदी कमीशन तक लेते हैं। साल भर दिल्ली और मुम्बई यात्राओं के दौरान फ्लाइट की टिकट और अन्य सुविधाएं तक वसूलते हैं। स्कूल, पुस्तक विके्रताओं और प्रकाशकों का यह गठजोड़ टूटा तो प्रत्येक अभिभावक को हजारों का फायदा हो सकता है।
- एमएस खान, पुस्तक विक्रेता संगठन