मध्य प्रदेश के राज्यपाल टंडन राजभवन में कराएंगे शास्त्रार्थ सभा सामाजिक बदलाव की प्राचीन परंपरा को जीवित करने का प्रयास

 




  1. राजभवन में 13 जनवरी को दोपहर 3.30 बजे शास्त्रार्थ सभा का आयोजन

  2. प्रदेश ही नहीं देश में पहली बार इस तरह का कोई आयोजन

  3. शास्त्रार्थ सभा में देश के प्रतिष्ठित विव्दजन और व्याकरणविद् न्याय, व्याकरण, ज्योतिष और साहित्य विषय पर शास्त्रार्थ


 


मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन एक अनूठा कार्य करने जा रहे हैं। टंडन राजभवन में 13 जनवरी को दोपहर 3.30 बजे शास्त्रार्थ सभा का आयोजन करने जा रहे हैं। प्रदेश ही नहीं देश में पहली बार इस तरह का कोई आयोजन किसी राज्यपाल व्दारा किया जा रहा है। इसमें देश—विदेश के प्रकांड विव्दानों को आमंत्रित किया जाएगा। राज्यपाल ने शास्त्रार्थ सभा के लिए राजभवन का दरवाजा खुला रखा है। कोई भी बुद्धीजीवी इस आयोजन में शामिल होकर अपने ज्ञान और तर्क से प्राचीन परंपरा को जीवित करने का सुझाव दे सकता है।



  1. आमजन इस सभा में शामिल होने के लिए ऑनलाईन पंजीयन करवाकर प्रवेश-पत्र प्राप्त कर सकते हैं। राजभवन की वेबसाईट www.governor.mp.gov.in पर पंजीयन शुरू कर दिया गया है।


 


राज्यपाल के सचिव मनोहर दुबे ने बताया कि शास्त्रार्थ सभा में देश के प्रतिष्ठित विव्दजन और व्याकरणविद् न्याय, व्याकरण, ज्योतिष और साहित्य विषय पर शास्त्रार्थ करेंगे। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में शास्त्रार्थ विशिष्ट समन्वयकारिता का प्रतीक है। आयोजन में विरासत के पन्नों में छुपी सामाजिक बदलाव की प्राचीन परम्परा सजीव होगी।
सचिव दुबे ने बताया कि राजभवन की वेबसाईट पर ही प्रवेश पत्र बन सकेगा। इसके बिना राजभवन में प्रवेश नहीं मिल सकेगा।


जैव विविधता के संरक्षण पर जोर
राज्यपाल टंडन का मानना है कि मानव जीवन की सुरक्षा के लिए जैव विविधता का संरक्षण करना जरुरी है। प्रकृति में पेड़-पौधे, फल-फूल कीट-पतंगे और जीव-जंतु सब का संरक्षण और विकास ही जैव-विविधता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवन शैली में प्रकृति का चक्र बिगड़ रहा है। इसे सुधारने के प्रयास आवश्यक हैं।




  1. राज्यपाल कहते हैं कि जैव-विविधता का संरक्षण और प्रकृति से जुड़ाव ही हमारी हजारों वर्ष की संस्कृति का आधार है। यदि यह जुड़ाव खत्म हो गया, तो हमारी गौरवशाली संस्कृति भी खतरे में आ जाएगी

  2. राज्यपाल का कहना है कि रासायनिक कीटनाशकों और खादों के उपयोग से भूमि और स्वास्थ्य, दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अब आवश्यकता जैविक खेती की है।