नगर निगम का ऑडिट शुरू, बीते सालों की 690 आपत्तियों का अब तक जवाब नहीं

भोपाल. नगर निगम के हिसाब-किताब की आपत्तियां दूर ही नहीं हो पा रही है। बीते सालों में की गई आपत्तियों में से 690 आपत्तियों का निगम की और से या तो जवाब ही नहीं दिया या फिर गोलमोल जवाब दिया है। जवाब नहीं देने पर संबंधित पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब फिर से नगर निगम के जोन, वार्ड और मुख्यालयों में जाकर ऑडिट की गड़बड़ पकडऩे की कोशिश की जा रही है।


सीएजी कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की टीम इन दिनों नगर निगम के अलग-अलग कार्यालयों में लेखा-जोखा के रजिस्टर देखती नजर आ जाएगी। दरअसल ये रूटीन व हर साल की जाने वाली प्रक्रिया है, लेकिन आपत्तियों पर संतुष्टिप्रद जवाब नहीं देने की स्थिति में संबंधित के खिलाफ कार्रवाई का भी प्रावधान है। निगम के हर जोन के हिसाब पर आपत्तियां आई, लेकिन बिना निराकरण इन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।



  1. 690 आपत्तियों में 300 करोड़ रुपए का घालमेल


ऑडिट की और से निगम के हिसाब में हर साल औसतन 120 के करीब आपत्तियां लगाई जाती है। इनमें से 70 फीसदी का उचित जवाब नहीं दिया जाता। सबसे अधिक आपत्तियों संपत्तिकर निर्धारण में है। इसमें 170 करोड़ रुपए के हिसाब किताब में गड़बड़ी है। बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में नपती व परिक्षेत्र बदलकर सामने वाले को लाभ देने की कोशिश के मामले हैं। 2015 में पार्किंग के लिए निगम के मैन्युअल रसीद कट्टों में करीब आठ करोड़ रुपए की गड़बड़ी की आपत्ति लगाई गई। 13 करोड़ रुपए की आपत्तियां तहबाजारी वसूली की मैन्युअल प्रक्रिया में बताई गई। यहां पार्षदों निधि से बनी मेंंटेनेंस की फाइलों पर 20 करोड़ रुपए गड़बड़ी की आपत्तियां लगाई गई।


ईमानदारी से ऑडिट हो तो एक साल में 200 करोड़ की गड़बड़ी सामने आए
निगम की राजस्व शाखा से जुड़े अफसर के अनुसार सालाना करीब 200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी है। ईमानदारी से ऑडिट किया जाए और तमाम आय-व्यय की जांच हो तो ये पकड़ में आ जाए। फिलहाल ऑडिट फौरीतौर पर होना लग रहा है। संपत्तियों के दायरे को जीआईएस से तय करने के बावजूद गड़बड़ी की जा रही है।



  1. गड़बड़ी रूके तो मिले शहर विकास के लिए राशि


इस समय पूरे शहर में विकास कार्य पूरी तरह से ठप्प है। मोहल्ले की गली-नाली जैसे काम तो बिल्कुल नहीं चल रहे। केंद्र व राज्य के अनुदान से जो काम हो रहे हैं, उन्हीं पर काम नजर आ रहा है। यदि ईमानदार ऑडिट से सालाना 200 करोड़ रुपए का लीकेज बंद हो जाए तो शहर में इससे सालाना सात नए ब्रिज की राशि मिल जाए। लोगों को अपने कार्यक्रम करने इससे 250 के करीब सामुदायिक केंद्र मिल जाए। इतना ही नहीं, करीब 500 किमी की नई सडक़ें बनाई जा सकती है।




  1. ऑडिट की आपत्तियों का जवाब दिया जाता है। जिनका नहीं दिया गया, उन्हें दिखवा रहे हैं। राजस्व की पूरी वसूली और उसका शहरहित में उपयोग ही हमारी प्राथमिकता है।

  2. कमल सोलंकी, अपर आयुक्त